राष्ट्रीय अध्यक्ष सतेन्द्र सेंगर की
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औरैया, आज के दौर में आरक्षण जैसा घाटक दीमक समाजिकता भेदभाव को बढ़ावा देने के साथ ही साथ साथ आपसी भेदभाव और ईर्ष्या का कारण बनता जा रहा है, बताता चलू कि आरक्षण को भारत में आरक्षण किसने और कब चालू किया था और किस तरह से आरक्षण का मुद्दा इतना बढ़ गया है कि लोग ऐसा करने पर उतारू हो चुके हैं की लोग एक दूसरे की जान लेने देने की बात करते हैं. आरक्षण एक ऐसा मुद्दा हो चुका है कि कोई भी राजनीतिक दल इसके बिना सत्ता में नहीं रह सकता है. आरक्षण एक बहुत ही बड़ी मुद्दा हो चुका है इसलिए मैं आपको आरक्षण के बारे में बता रहा हूँ कि आरक्षण कब और किसने चालू किया था. इसके पीछे उनका उद्देश्य क्या था
आरक्षण सबसे पहले भारत में 1882 मे चालू किया गया था. यह आरक्षण महाराष्ट्र में लागू किया गया था, आरक्षण भारत में स्वतंत्रता से पूर्व लगी हुई थी और इसे लागू करने वाले कोल्हापुर के महाराज साहू थे, साहू ने आरक्षण सामाजिक सुधार के लिए लगाया था, वह बहुत उदार और प्रगतिशील सोच वाले व्यक्ति थे, उन्होंने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए पहले आरंभ किया था, उन्होंने महाराष्ट्र के सामाजिक सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई थी, उनके साथ डॉ भीमराव अंबेडकर ने भी सामाजिक गतिविधियों में भी ने साथ दिया था, फिर उसके बाद 1909 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण के मुद्दों को प्रस्तुत किया गया, जो आज समाज और देश की प्रगति में बाधक बनकर ख़डी है, इतना ही नही अब तो आरक्षण आपसी एकता का खंडन आपसी मतभेद कर एक दूसरे से ईर्ष्या करने पर बिवश है, और तो और राजनैतिक दल भी आरक्षण की ओट में सर्व जाति के समाज को गुमराह कर खुद की सदा सदा के लिये सत्ता स्थपित करने की साजिस करते आ रहे है, जैसे आप सभी लोग देख रहे है कि पंचायती राज चुनावों को लेकर गरमा गरमी चल रही है, वहीं दूसरी ओर चुनावी प्रत्याशियों को आरक्षण रूपी दीमक का भय दिल और दिमाग़ में घुसा हुआ है कि पता नही सरकार की से कहाँ से किसको आरक्षण मिले, जब तक सभी चुनावी सीटों पर आरक्षण घोषित नही किया जायेगा तब तक प्रत्येक चुनावी प्रत्याशी एक दूसरे का मुँह ताकता रहे, दूसरी ओर मा उच्च न्यायालय नें राज्य सरकार को आदेशित करते हुये कहा है कि अप्रैल तक पंचायती चुनाव प्रक्रिया पूरी करें वहीं पर अप्रैल माह में ही बोर्ड परीक्षा की टाइमिग की घोषणा कर दी एक ही समय में ये दोनों काम सम्भव नही है, दूसरी बात यह भी बिचारणनीय है, कि चुनावी प्रत्याशी को मात्र एक माह ही दिया जा रहा है, आखिर वह जन संम्पर्क करेंगे या फिर प्रचार प्रसार