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बीजेपी विधायक को जबरन सपा में उठा ले गया भाई
तो बेटी ने पिता के खिलाफ छेड़ी बहुत बड़ी लड़ाई
पिता सपा के टिकट पर तो बेटी बीजेपी के टिकट पर
सियासत का कोई रंग नहीं होता गिरगिट से ज्यादा रंग तो नेता बदलते हैं यूपी का जिला औरैया अपनी राजनैतिक मजबूती के लिए हमेशा पकड़ रखता है लेकिन कहानी इस बार एकदम नई है
औरैया की बीजेपी बिधूना विधानसभा के विधायक हैं विनय शाक्य 5 सालों से मलाई खाने के बाद वह सपा में शामिल हो गए
लेकिन लड़की भूमि में विनय शाक्य की बेटी जो पापा का ख्याल रखती थी वही सबसे बड़ी विरोधी बन गई
विनय सागर को अपनी पार्टी समाजवादी पार्टी में शामिल होने पर इनाम देते हुए टिकट दे दिया तो बीजेपी ने 100 कदम आगे चलते हुए बेटी रिया शाक्य को टिकट दे दिया अब औरैया के बिधूना सीट की लड़ाई बाप और बेटी के बीच आ गई है
विनय शाक्य जब बीजेपी को छोड़कर सपा में गए थे तभी बेटी ने दावा किया था कि उन्हें चाचा जबरन लेकर गए हैं और बीजेपी को मौका मिला तो बाप बेटी आज आमने सामने
विधायक विनय शाक्य की बेटी कसम खा रही है कि पिता को हराकर मानेगी सियासत में यह कोई पहला मौका नहीं है लेकिन यह कहानी खास क्यों है जरा यह समझये
एमएलए बने साहब के परिवार में कुर्सी के लिए महाभारत हुई दिनेश शाक्य और उनके भाई सपा के साथ चुनावी मैदान में डटे हैं
विनय शाक्य की सगी बेटी रिया और बेटा बीजेपी के साथ डटे है
अब बिधूना विधानसभा के वोटर भी कंफ्यूज हैं की क्या करे
ऐसे कई किस्से इतिहास में हैं और बेहद दिलचस्प हैं
मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के परिवार के सामने भी कभी ऐसा ही संकट खड़ा हुआ था
1984 में अटल बिहारी बाजपेई ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर लोकसभा से ताल ठोकी ग्वालियर राजघराने और सिंधिया परिवार के नाम से काफी फेमस है अटल बिहारी वाजपेई कि चुनाव में थे माधवराव सिंधिया की मां राजमाता अटल बिहारी बाजपेई का चुनाव प्रचार कर रही थी
और तभी कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को टिकट दे दिया राजमाता विजय राजसिंधिया के सामने धर्म संकट पड़ा था क्योंकि वह बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेई के साथ थी और दूसरी तरफ उनका पुत्र माधवराव सिंधिया चुनाव
मैं खड़ा था ऐसे में उन्होंने ग्वालियर की जनता से यही अपील की थी एक और पूत है और दूसरी ओर सपूत है फैसला आपके हाथ में है इसके बाद जनता ने इशारा समझ लिया और अटल बिहारी बाजपेई चुनाव हार गए। यह कहानी भारतीय राजनीति के सबसे बड़े दिलचस्प की कहानी इस चुनाव में कांग्रेस सहानुभूति की लहर पर सवार थीं
तो राजमाता के सामने पार्टी और पुत्र के बीच संकट आ खड़ा था लेकिन जीत राजघराने की हुई
और अटल जी चुनाव हार गए अटल बिहारी वाजपेई पहली बार 1952 में लखनऊ लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में उतरे थे
लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली
उन्हें पहली बार सफलता 1957 में मिली 57 में उन्होंने 3 लोकसभा सीटों लखनऊ मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लगवाया गया हालांकि वह लखनऊ से जीत सके अब ऐसा ही हाल बिधूना में बना है
देखना यह होगा कि जीतेगा कौन
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