भारतीय समाज से कब खत्म होगा महिलाओं का उत्पीड़न ?, कब जागेगा हमारा समाज ?, कब तक कागजों में चलते रहेंगे महिला सुरक्षा सम्मान के कानून–घनश्याम सिंह त्रिभाषी साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार
■ नवजात दुधमुँहे शिशु के साथ पत्नी को मारपीट कर पति द्वारा घर से निकालने,लखीमपुर के चुनाव चीरहरण,कानपुर देहात की पुलिस द्वारा महिला के ऊपर चढ़कर पिटाई जैसी घटनाएं समाज व सरकार के मुंह पर तमाचा
■ दर-दर की ठोकरें खा रही महिलाओं बेटियां के सम्मान व सुरक्षा के सपने कब होंगे साकार
■ आम नागरिक ही नहीं जनप्रतिनिधि व अधिकारी भी भूले महिलाओं की मान-मर्यादा
■ समस्या के समुचित समाधान के लिए समाज,समुदाय,सरकार को संयुक्त पहल कर स्त्री-पुरुष समानता के सिद्धांत को स्वीकार करने की सतत आवश्यकता
"भारतीय समाज में निरंतर गिरते नारी के सम्मान को देखकर निश्चय ही प्रत्येक प्रबुद्ध जन को हार्दिक कष्ट की अनुभूति होती होगी और होनी भी चाहिए क्योंकि नारी नर की जननी है अगर इस संसार में नारी ना होती तो नर कहां से आता ? कैसे ये सृष्टि चलती, उसी नारी का आज कितना दुखमय जीवन है यह कौन बताएगा ?
“नारी का क्यों दुखमय जीवन,क्यों गुलाब में हैं कांटे।
उस नारी का भाग्य हाय..सुबक-सुबक दुःख रजनी काटे।।-निज काव्य ग्रंथ से
यह सत्य है कि हमने बहुत भौतिक विकास किया है,हम जमीन से आसमान तक ही नहीं चांद तारों तक पंहुच गए पर दुःख की बात है कि हम सभी लोग अपनी नैतिकता,शिष्टाचार व सामाजिक मर्यादा भूल गए, हम यह भी भूल गए कि हमारे पवित्र ग्रंथों में “
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।। मनुस्मृति ३/५६ ।।
“जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।” स्पष्ट रूप से उल्लिखित है,
इस समस्या का ज्यादा खेद जनक पहलू यह भी है कि हमारा बुद्धिजीवी वर्ग नारी के गिरते सम्मान और अपमान पर चुप्पी साधे है हमारे समाज में नारी के गिरते सम्मान पर सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं कोरी कल्पनाएं साबित हो रही हैं हम देख रहे हैं कि हमारे समाज में निरंतर महिला उत्पीड़न जारी है सवाल यह है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही महिला कल्याण की
घरेलू हिंसा कानून,1090,दहेज प्रतिषेध अधिनियम,मातृत्व अधिकार,मुफ्त कानून सहायता आदि तमाम कानून व योजनाओं के बावजूद समाज से महिला उत्पीड़न खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है हमारा समाज अपने आंखों पर पट्टी बांधकर गहरी कुंभकरण नींद में सो रहा है हमारा समाज अपनी कुंभकरणी नींद से कब जागेगा ? क्या इसके लिए हम हमारा समाज समुदाय और संसार और हमारी सरकारें जिम्मेदार नहीं हैं हम आप देख रहे हैं की पीड़ित महिलाएं, बेटियां न्याय के लिए वर्षों से अधिकारियों के चक्कर लगा रही हैं थानों से लेकर अदालतों तक दर-दर की ठोकरें खा रही महिलाओं को न्याय नसीब नहीं हो रहा है कितनी बेटियां दहेज प्रताड़ना के चलते घर से बेघर कर दी गई हैं कितनी बहन,बेटियां अपने मायके में निर्वासित जीवन जी रही हैं,औरैया जनपद में घटी एक ताजी अत्यंत निंदनीय घटना में नवजात दुधमुँहे शिशु के साथ भूखी-प्यासी
पत्नी को मारपीट कर पति द्वारा घर से निकाल दिया गया,इसके पूर्व अभी हाल में संपन्न हुए ब्लॉक प्रमुख चुनाव में लखीमपुर में सरेआम एक महिला की साड़ी खींची गई, तीसरी घटना में कानपुर में उप निरीक्षक द्वारा महिला को गिरा कर और उसके ऊपर सवार होकर पीटा गया यह घटनाएं मीडिया में कई दिनों तक छाई रही, ऐसी घटनाएं समाज व सरकार के मुंह पर जोरदार तमाचा हैं, इससे साफ जाहिर होता है आज आम नागरिक ही नहीं जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारी भी अपनी मर्यादा भूल गए हैं
बड़ा दुर्भाग्य का विषय है कि दहेज पीड़ित,घरेलू हिंसा की शिकार बेटियों को थाने अदालतों में दहेज संबंधी मुकदमों में अनावश्यक विलंब से पीड़ितों को न्याय मिलने की आस पूरी नहीं हो रही है, यह सही है कि दहेज उत्पीड़न के मुकदमों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है पर इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि सारे दहेज उत्पीड़न के मुकदमें निरा धार हैं मेरे संज्ञान में है कई घरेलू हिंसा व दहेज उत्पीड़न की शिकार बेटियां मायके में रहकर लंबे समय से दहेज प्रताड़ना के मुकदमे लड़ रहे हैं पर न्यायालय में हो रहे विलंब से उनके परिजनों का पैसा और उनका समय बर्बाद हो रहा है, मेरा तो यह मानना है कि दहेज प्रताड़ना व घरेलू हिंसा सम्बन्धी समस्या पर न्यायालय को गंभीरता पूर्वक विचार करके जल्द सुनवाई की विशेष व्यवस्था करनी चाहिए ताकि दर-दर की ठोकरें खा रही महिलाओं बेटियां के सम्मान व सुरक्षा के सपने जल्द साकार हो सकें, महिलाओं के शोषण और उत्पीड़न के लिए हमारे समाज को भी अपनी विचारधारा बदलने की जरूरत है इस विचारधारा बदलने की जरूरत में महिलाओं की भी भागीदारी अत्यंत आवश्यक है महिलाओं के शोषण उत्पीड़न में केवल पुरुष को ही जिम्मेदार ठहराना भी न्याय संगत नहीं है, क्या घर की चाहर दीवारी के भीतर
महिला उत्पीड़न रोकने के लिए महिलाएं प्रयास करती हैं अक्सर देखा जाता है की घरेलू हिंसा और महिला उत्पीड़न के मामले में सास,जिठानी और ननद आरोप लगते हैं, क्या सास और ननद महिलाएं नहीं हैं ? उन्हें भी बहू बेटियों के साथ अपना नजरिया बदलने की सख्त आवश्यकता है, जब तक सास,जिठानी,देवरानी और ननद के उनके साथ सामंजस्य पूर्ण संबंध स्थापित नहीं होंगे तब तक घर और परिवार में सुख शांति का वातावरण उत्पन्न होना संभव नहीं है,
यह समस्या वाकई जटिल बन गई है है पर लाइलाज नहीं है इस समस्या के समुचित समाधान के लिए समाज,समुदाय,सरकार को संयुक्त पहल कर स्त्री-पुरुष समानता के सिद्धांत को स्वीकार करने की सतत आवश्यकता है, स्त्री-पुरुष समानता के सिद्धांत अपनाने से ही इस समस्या का निदान संभव है, स्त्री पुरुष समानता पर बहाई शिक्षाओं में बहुत ही अच्छा उदाहरण दिया गया है जिसमें स्त्री पुरुष को एक ही पंछी के दो डैने और एक गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहियों के समान बताया गया है, बहाई ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि बेटी-बेटा व स्त्री और पुरुष को समान रूप से अधिकार मिलने चाहिए बताया गया कि यदि स्त्री या पुरुष रुपी एक पंछी के दो डैनों में यदि एक कमजोर होगा तो पंछी उड़ान नहीं भर पाएगा,इसलिए पुरुष ही नहीं स्त्रियों को भी संकल्प लेकर इस समस्या के समुचित वह सामंजस्य पूर्ण समाधान के लिए कार्य करना होगा हम और हमारे समाज को आज महिलाओं को प्रेरित करने की भी आवश्यकता है, महिलाएं समाज समुदाय और संसार की प्रगति के लिए संयुक्त रूप से सहयोग करेंगी तभी वास्तव में हम विकसित होंगे, महिलाएं भी परिवार में विवेक से काम लेकर सामंजस्य पूर्ण संबंध स्थापित कर परिवार, समाज, समुदाय को आगे बढ़ाने का काम करें क्योंकि वही बच्चों की जन्मदाता,पालनहार और प्रथम शिक्षक हैं वे अपने को किसी प्रकार से कमजोर न समझें–
नारी नहीं-नहीं हो निर्बल
यह स्वीकार सहर्ष करो।।
तुमको खोया मान मिलेगा,
नारी तुम संघर्ष करो।।
—- निज काव्य ग्रंथ से
घनश्याम सिंह त्रिभाषी साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार