पत्रकारों के आपसी मतभेदों के चलते 72 वर्षों से उन्हें उनके अधिकारों से बंचित रखा गया है – सतेन्द्र सेंगर ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’मीडिया अधिकार मंच भारत
??लोक तन्त्र के तीनों स्तम्भों ने पत्रकारों/मीडिया कर्मियों को बिकलांग बनाकर एक बिना पैसे का नौकर (गुलाम) बनाकर रखा है – अधिकारों से बंचित रखा गया है – सतेन्द्र सेंगर ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’मीडिया अधिकार मंच भारत
??अनेकों पत्रकार संगठनों सहित भारतीय प्रेस परिषद भी पत्रकारों के उत्पीड़न,सम्मान, अधिकारों को सुरक्षित नहीं कर सका है- सतेन्द्र सेंगर ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’मीडिया अधिकार मंच भारत
??लोक तन्त्र में पत्रकारों/मीडिया कर्मियों चौथा स्तम्भ मिलने पत्रकारों ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश और दुनियां का वास्तविक विकास होना सम्भव है – सतेन्द्र सेंगर ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’मीडिया अधिकार मंच भारत
जैसाकि आप लोगों मालूम हैकि पत्रकार एवं मीडिया कर्मी को कलम का सिपाही कहा गया है इसके अलावा भी पत्रकार एवं मीडिया को लोक तन्त्र का चौथा स्तम्भ भी कहा गया है, पत्रकारिता एक ऐसी समाज सेवा है जिसके लिये अनेकों अनेक कुर्वानी देनी पड़ती है, इसके बाद भी आखिर लोक तन्त्र के चौथे स्तम्भ को उनके अधिकारों से 72 वर्षों की देश की आजादी से लेकर आजतक उन्हें उनके अधिकारों से उपेक्षित रखा गया है, इसका सिर्फ और सिर्फ यही कारण हैकि कुछ अराजक किस्म के लोग पत्रकारिता में शामिल हो गये जोकि वह पत्रकारिता की हनक बनाकर अपने अवैध कारोवार गति दे रहे है, इसके अलावा पत्रकार ही एक दूसरे पत्रकार को छोटा बड़ा एवं फर्जी असली पत्रकार बताकर शासन प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियें के आगे अपने नंबर बढ़ाने का कार्य करते आ रहे है, जिसका फायदा लोक तन्त्र के तीनों स्तम्भ उठाते हुये लोक तन्त्र के चौथे स्तम्भ मीडिया/पत्रकार समाज को उनके अधिकारों से बंचित ही नहीं रखा गया है, बल्कि उन्हें बिकलांग बनाकर एक बिना पैसे का नौकर (गुलाम) बनाकर रखा है,वहीं दूसरी ओर आज तक कई पत्रकारों के संगठन भी बने जिन्होंने पत्रकारों का ही दोहन करते हुये अपने आपको चमकाने का कार्य किया है, यहाँ तक कि भारतीय प्रेस परिषद भी पत्रकारों के उत्पीड़न,सम्मान, अधिकारों को सुरक्षित नहीं कर सका है, अब हम आप सब बेबजह ही शाशन प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियें को दोष देने में लगे है, यदि आपको अपना एवं अपने आने वाले भविष्य को इतनी ही चिंता है तो पहले हम आप सब मिलकर एक दूसरे को छोटा बड़ा पत्रकार कहना या फर्जी असली पत्रकार कहना बन्द करे तथा जातिवादी पत्रकारिता छोड़ कर सब एकजुट होकर अपने अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों और अपने मौलिक अधिकारों को संविधानिक तौर पर सुरक्षित कराने की आवाज़ उठायें इतना ही नहीं अपने अधिकारों को लेने के लिये लोक तन्त्र के तीनों स्तम्भों का खुलकर समाना करे इससे हम पत्रकार समाज का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश और दुनियां का भी वास्तविक विकास होना सम्भव है,